Tuesday, March 15, 2011

वाइफ नहीं, धर्मपत्नी खोजता हूं।


खोज

भवन तो बहुत हैं , गृह खोजता हूं। 
सितारे  बहुत हैं, चांद खोजता हूं।
नर नारी हैं, इंसान खोजता हूं।
कहने को तो सब अपने है,
परचित जहां  में, अपनत्व खोजता हूं।
राम का मुखोटा लगाये, घूम रहे है रावण,
सीता के हरण के बाद भी, 
मुखोटा हटाने को आये , जटायू खोजता हूं।
राम आयें न आयें, विभीषण खोजता हूं।
शासक बहुत हैं, सेवक खोजता हूं।
जंगलों में मंगल की बात है पुरानी,
नगरों में मंगल, मैं खोजता हूं।
अरण्यों में शान्ति तो मिटती जा रही,
वातानुकूलित कक्षों में , शान्ति खोजता हूं।
प्रतिभा,चतुरता व कुशलता सभी,
हैं कायरता द्वारा रक्षित ,
मिले कहीं निडरता,उसे खोजता हूं।
मम्मी मिलीं हैं , मैया खोजता हूं।
वाइफ नहीं, धर्मपत्नी खोजता हूं।
              प्रेमिका नहीं गृहलक्ष्मी खोजता हूं। 
वोटों की खातिर नेता, आते रहते हैं अक्सर,
मैं तो आज फिर से, बापू को खोजता हूं।
मेरी खोज में, सहायक हो ऐसा,
            अपने लिए, एक साथी खोजता हूं। 

1 comment:

  1. शुभकामनायें राष्ट्रप्रेमी जी !!

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