Monday, March 14, 2011

सरस्वती का चीर-हरण कर, मन्दिर उसका बनवाते हो.


षड्यन्त्रो   के  घेरे   में  घिर

षड्यन्त्रो   के  घेरे   में  घिर,  कैसे, मौन रहा जा सकता ?
संघर्ष किया है हमने हर पल,कैसे आज सहा जा सकता?
खुश हो लो तुम यही समझकर, अभिव्यक्ति को दबा चुके हो.
शालीनता के आवरणों से, सत्य को नहीं ढका जा सकता ?


लोकतन्त्र के गाने गाकर लोकतन्त्र को दफनाते हो.
बातें तो सुन्दर करते हो, जातिवाद को पनपाते हो.
कहते कुछ और करते कुछ हो, सबको ही है मूरख समझा,
जन को इधर-उधर उलझाकर, भ्रष्टाचार को अपनाते हो.




अभिव्यक्ति को दबा के प्यारे, कैसे चैन से रह पाओगे?
निजी स्वार्थ हित भ्रष्ट हुए, फिर कैसे जन को अपनाओगे?
भ्रष्टाचार को गले लगाकर, संस्था का हित किसने साधा?
चापलूसों के घेरे में घिर, क्या सुधार तुम कर पाओगे ?

परीक्षाओं में नकल कराकर, परिणाम दिखाकर इठलाते हो.
सरस्वती का चीर-हरण कर, मन्दिर उसका बनवाते हो.
शत-प्रतिशत हो रजेल्ट भले ही, देश को क्या तुम दे पाओगे?
छात्रों को जब समझ आयेगी, उनसे बस गाली पाओगे.

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