होरी कौए हुरदंग फरकत अंग-अंग
होरी कौए हुरदंग फरकत अंग-अंग,
होरी की उमंग अंग-अंग में समाई ऐ।
रंगन कौए घोर नृत्य करत चहुं ओर,
नांचत हैं गोप एक गोपिका नचाई ऐ।
झूमि रहे अंग-अंग नचत हैं सिगु संग,
काम की तरंग अंग-अंग में समाई ऐ।
धाम,वाम और बाग साथ-साथ मटकत,
होरी की हुरंग मोहि बरसाने लाई ऐ।।
चंहु ओर ऐ बसन्त रंगन कौ नाएं अन्तु
लाल, हरौ, बैंगनी, गुलाबी मन भायौ ऐ।
लायो इतनो सौ रंग जिहु सिगु डारि दियौ,
लला तू दिखाय हमें औरू कहा लायौ ऐ।
हमने तौ होरी कहि गारी सिगु गाइ दईं,
तू तौ बतराइ लला, तैंनै कहा गायो ऐ।
नांचु नेकु देखि लऊं,नांचि लला ठाड़ो हे कैं,
तू तौ खूब नाचत हो, काहे शरमायो ऐ।।
चोप करि केसर लगायो याने अंगन पै,
हेरि लायो ग्वाल-बाल,हुरियारो आयो ऐ।
हरौ,लाल,गुलाबी,अरूण,आसमानी रंगु,
लाल पोल लाल रंगु लाल ने लगायो ऐ।
होरी आइवे ते हिय नेह रस रंगि गयौ,
ग्वाल सिगु हरे रंगे रंगी ब्रज नारी ऐं।
राष्ट्रप्रेमी हियरा सरूप रस रंगि दयौ,
रंगि रहीं गैल-गैल,गैल रंगि डारी ऐं।।
होरी हंसावत होरी खिलावत,
होरी ही जरावत मानस कौ तम।
होरी भुलावत,गुन सिखलावत,
होरी मिलावत प्रेमिन को सम।
होरी ऐ नगर में,होरी ऐ मन में,
होरी से कांपत पापिन कौ मन।
होरी मारत, होरी बचावत,
नरसिंह नंचावत,नांचत हैं हम।।
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