Wednesday, March 16, 2011

भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में


भारत देश है आज जल रहा 
              
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में,
अर्थी चली असंख्यों बाला, बैठ न पाईं डोली में।
लाखों ने अपनी कन्या की ,मांग सिन्दूर से भरने को,
दी जीवनाहुति असंख्यों अपनी शरम की बोली में।


जाके पैर न फटी बिबाई, वो क्या जाने पीर पराई,
जिन पर बीती वही जानते,मकान बेच कर करी सगाई।
गहने अपना जिस्म रख दिया,सिर्फ मांग की बोली में,
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


फिर भी रूकी न अर्थी देखो,मानवता की भाषा में,
लड़के वाले दहेज मांगते और धनी की आशा में।
लड़कों की बिक्री होती है,बाजारों की बोली में,         
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


कन्या नहीं दान की वस्तु, सम्पत्ति में पूरा हक है,
पैतृक सम्पत्ति की वारिस, शिक्षा पर पूरा हक है।
मालिक वह खुद ही होगी, दहेज न होगा रोली में 
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


केवल विरोध से दहेज न मिटता, कुछ और हमें करना होगा,
शिक्षा और अधिकार जुटाकर, नारी को खुद बढ़ना होगा।
आर्थिक शक्ति पाये जब वह, कोई न डाले झोली में ।
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


बेटी पाये विकास के अवसर,खुद ही आगे बढ़ लेगी,
पुरूष बने नहीं भाग्य विधाता, अपना पथ खुद गढ़ लेगी।
भ्रूण हत्या कर मिटाओ न उसको, वश लालच की खोली में
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


अब तो समझो लड़के वालो,कन्याओं की शादी में,
नहीं बटाओ हाथ इस तरह, तुम ऐसी बबार्बादी में।
आग लगे,ऐसे दहेज को हैवानों की टोली में,
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।


तुमको भी दुख होगा, जब क्षण विपरीत का आयेगा,
या यह बेबश का पैसा, तुम्हें नरक ले जायेगा।
कटु सत्य है,बुरा न मानो,राष्ट्रप्रेमी की बोली में,
भारत देश है आज जल रहा,इस दहेज की होली में।

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