मैं, तन्हा, अब भी आपको देख रहा हूँ।
आप सामने बैठी हो, मैं आपको घूर रहा हूँ।
गुस्सा होते हुए भी, मुस्कराहट न छिपती,
गीले बाल आइने में खड़ी, देख रहा हूँ।
जो जख्म दिए आपने, वक्त भी, उन्हें भर ना सकेगा।
मरहम नहीं दूसरा, आपके सिवा, कोई लगा ना सकेगा।
हमारी चाहत को ना समझ सके, वह बुद्धि कभी कपटी,
सच्चे दिल, आपको, आपके बिना दिल का जर्रा न मिलेगा।
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