नीलाकाश में थे
भटकते हम
राह न पड़ती थी दिखाई
न थी चाह
किसी के साथ की
खिली कली ने चाह जगाई
चाह जगी जब
कली छिटक गई
जिन्दगी अपनी राह भटक गई
एक बार फिर उसको देखा
समझा खुल गई किस्मत रेखा
हाथ कली की तरफ बढ़ा जब
एक बार फिर हाथ झटक गई।
भटकते हम
राह न पड़ती थी दिखाई
न थी चाह
किसी के साथ की
खिली कली ने चाह जगाई
चाह जगी जब
कली छिटक गई
जिन्दगी अपनी राह भटक गई
एक बार फिर उसको देखा
समझा खुल गई किस्मत रेखा
हाथ कली की तरफ बढ़ा जब
एक बार फिर हाथ झटक गई।
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