खोटा सिक्का नहीं हो तुम भी
एक रुपये के नोट को तुमने, एक हजार कह हमें चलाया।
खोटा सिक्का नहीं हो तुम भी, अपना मूल्य है अधिक लगाया।।
झूठ बोलकर मूल्य न बढ़ता,
छल-कपट तो मति है हरता।
गलती स्वीकार, सुधार करे जो,
व्यक्ति वही शिखर पर चढ़ता।
हमने सब कुछ सौंप दिया था, तुमने सब कुछ सब से छिपाया।
खोटा सिक्का नहीं हो तुम भी, अपना मूल्य है अधिक लगाया।।
सब कुछ सच-सच बताया होता,
समर्पण का जज्बा दिखाया होता।
प्रेम, विश्वास और सेवा से ही,
संबन्ध का बिरवा लगाया होता।
मुड़े-तुड़े और फटे नोट को, तुमने हमको नया बताया।
खोटा सिक्का नहीं हो तुम भी, अपना मूल्य है अधिक लगाया।।
अति विश्वास की भेंट चढ़े हम,
विश्वासघात के शिकार बने हम।
भिन्न-भिन्न हैं अपने पथ अब,
महफिल सजो तुम, अकेले रहे हम।
जो पाया है उसे सभालो, सृजन प्रकृति से नहीं है पाया।
खोटा सिक्का नहीं हो तुम भी, अपना मूल्य है अधिक लगाया।।
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