वादी
हावी है हैवानियत
निरर्थक शब्द हैं लेखनी पर
पुत्र पिता को ताड़ना देता
विधर्मी धर्म की आड़ लेता
राष्ट्रभक्त राष्ट्रद्रोहियों से मात खा रहे हैं
बेटे ही मां का सिन्दूर चुरा रहे हैं
विचारों पर छाया है वाद
जातिवाद,सम्प्रदायवाद,
गान्धीवाद,आतंकवाद और
राष्ट्रवाद
सबको ही मानने वाले हैं वादी
तन पर धारे हैं सुन्दर खादी
राम के प्रति श्रद्धा नहीं किसी में
किन्तु फिर भी बेबसी में
मन्दिर बनाने,
न बनाने को चिन्तित हैं
इन्हीं से तो हम सब सिंचित हैं
यदि छोड़ दें हम वाद
कैसे बनेंगे वादी
पहन न पायें खादी
हो जायेगी हमारी बरबादी
राष्ट्रप्रेमी ठोकर न खायेगा
सदैव वादी कहलायेगा।
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