Monday, November 14, 2011

कविता कहां? अब खो गई है।


कविता कहां? अब खो गई है।
                                     
कविता कहां? अब खो गई है।
बीज  शांति  के, बो गई है॥
               शांति  मृत्यु की, मानो छाया,
               जीवन-विहीन ही, चलती काया।
               खोया  प्रेम, ईर्ष्या   नहीं  है,
               सपने मरे, दिख़ती न माया।
बेचैनी कहां? क्यों सो गई है?
कविता कहां? अब खो गई है॥
               जीने की, अब नहीं है इच्छा,
               मौत की भी, नहीं  प्रतीक्षा ।
               चाहते हैं,  संयमी   जो,
               गले पड़ी आ, वह तितीक्षा।
नि:स्पंद बुद्धि भी रो गई है।
कविता कहां? अब खो गई है॥

टीचर
           
शिक्षक को दो ही मिलें, मजदूर को सात हज़ार,
टीचर नहीं फटीचर कहो ,टीचर बैठे बार
टीचर बैठे बार लक्षमी जी जाम पिलातीं
सरस्वती खड़ी हताश, बेचारी दुत्कारीं जातीं।


अधिकारी?
                 
अधिकारी ही है भ्रष्ट जहां, लघुकारी न जाने क्या होगा?
मर्यादा विहीन हो राम यदि , मुरारी न जाने क्या होगा?
नेता ही हों कामिनी दास , अन्जाम न जाने क्या होगा?
रक्षक ही बन बैठे भक्षक, परिणाम न जाने क्या होगा?

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