08.15.2007
प्रेम नहीं कर सकती
बुद्धि,
वह तो हानि-लाभ का
हिसाब लगाती है।
प्रेम नहीं कर सकती
कामना,
वह तो स्वार्थो को
पूरा करने के तिगड़में लगाती है।
प्रेम नहीं कर सकतीं
सुविधाएँ
वे तो येन-केन-प्रकारेण
हरदम संसाधनों को जुटाती हैं।
प्रेम नहीं कर सकता
अहम
वह तो अपने को ही सही
सिद्ध करने के कुतर्क खंगालता है।
प्रेम नहीं कर सकती
चुनौती
सब कुछ कर पाने की
वह तो रोंदने में मजा पाती है।
प्रेम उपजता है
दिल में
जो देने के अहम से भी दूर
समर्पण करना जानता है।
प्रेम करती है
भावना
जो अपना सब कुछ सौंपकर भी
कुछ नहीं चाहती।
प्रेम नहीं कर सकती
बुद्धि,
वह तो हानि-लाभ का
हिसाब लगाती है।
प्रेम नहीं कर सकती
कामना,
वह तो स्वार्थो को
पूरा करने के तिगड़में लगाती है।
प्रेम नहीं कर सकतीं
सुविधाएँ
वे तो येन-केन-प्रकारेण
हरदम संसाधनों को जुटाती हैं।
प्रेम नहीं कर सकता
अहम
वह तो अपने को ही सही
सिद्ध करने के कुतर्क खंगालता है।
प्रेम नहीं कर सकती
चुनौती
सब कुछ कर पाने की
वह तो रोंदने में मजा पाती है।
प्रेम उपजता है
दिल में
जो देने के अहम से भी दूर
समर्पण करना जानता है।
प्रेम करती है
भावना
जो अपना सब कुछ सौंपकर भी
कुछ नहीं चाहती।
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