बच्चे को अकेले पालने में आने वाली प्रत्येक कठिनाई उसे जीवनसंगिनी की आवश्यकता महसूस कराती थी। माता-पिता के किसी प्रकार के कष्ट की अनुभूति उसे उनकी सेवा न कर पाने की अक्षमता का दर्द देती थी। वह अक्सर अपने बच्चे से कहा करता था कि शायद अगले वर्ष से उसे अपने व्यक्तिगत कार्यो को करने में कठिनाई न हो, हो सकता है कि कोई भली स्त्री उसकी माँ की भूमिका में आ जाय। जब भी प्रोफाइल पर किसी की रूचि प्राप्त होती या कोई उसकी रूचि को स्वीकार करती। उसे उम्मीद होती। उससे बात होती, किंतु कुछ दिनों बाद ही पता चलता कि उसने तो केवल उसकी सेलेरी देखकर रूचि दिखायी थी। एक-दो ने तो बातचीत के बाद स्पष्ट यह भी कह दिया कि आपके पास संन्यासिनी बनकर क्यों आयें? इससे तो अच्छा है कि हम शादी ही न करें। राजधानी दिल्ली की एक भद्र महिला ने अपनी ढंग से जीवन शैली अपनाने के बारे में समझाते हुए दावा किया कि मेरे साथ मेरे ढंग से जीकर देखो, जीवन में हर क्षण मजा दूँगी। अन्त में उसने मनोज को कहा, ‘जाओ तुम नर्क में जाओ’। उस महिला को सादा जीवन नर्क के तुल्य लग रहा था।
इस प्रकार स्पष्टता से मना करने वाली महिलाओं का विचार उसे कभी बुरा नहीं लगा। सबको अपने अनुसार जीवन पथ निर्धारित करने का हक है। जिसको जिस प्रकार के साथी की आवश्यकता महसूस होती है, उसे सोच-विचार कर निर्णय लेने का अधिकार मिलना ही चाहिए। कई बार पता चलता कि सामने वाली ने पूरा प्रोफाइल पढ़ा ही नहीं था, केवल उसकी नौकरी और आय के तथ्यों को देखकर ही उससे सम्पर्क कर लिया था। कई बार पता चलता कि प्रोफाइल महिला के अभिभावकों ने बनाया था और उसके साथ सभी बाते साझा नहीं की गयीं थी। शादी के इसी प्रयास में मनोज को स्पष्ट अनुभूति हुई कि लोग कितने भौतिकवादी हो गये है। एक महिला जो नौकरी करती रही कि शादी करने के लिए साथ रहना आवश्यक नहीं है। दोनों नौकरी करेंगे, अच्छा रूपया होगा। कभी आप मेरे पास आ जाया करना, कभी मैं आपके पास आ जाऊँगी। मनोज को ऐसी शादी का कोई मतलब ही नजर न आता था। जिसमें पारिवारिक जिम्मेदारियों की अपेक्षा मनुष्य केवल पैसा कमाने की मशीन बन जाय। जब साथ-साथ रह ही नहीं सकते तो कैसा परिवार? अतः उस कमाऊ महिला के प्रस्ताव को स्वीकार करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। किंतु वह महिला अवश्य ही अपने विचारों में स्पष्ट व सच्ची व ईमानदार महिला थी उसने कोई झूठा आश्वासन नहीं दिया। मनोज ने तय कर रखा था कि उसे जिसके साथ रहना है, उससे बात करके उसे प्रत्येक तथ्य वह अवश्य बता देगा। सामने वाली निर्णय करे कि वह उपयुक्त समझती है या नहीं? वह चाहता था कि उसकी भावी जीवनसंगिनी उसके बारे में सबकुछ जानकर उसके साथ उसके जीवनपथ की सहगामिनी बने। उसे कभी यह महसूस न करे कि उसे यह मालुम नहीं था, अन्यथा वह शादी न करती।
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