मैंने ना देखा बसन्त!
मैंने ना देखा बसन्त!
मुद्दों को देखा ज्वलन्त!
बच्चे को ना प्यार मिला।
साथी को ना एतबार मिला।
शिक्षा नाम बस तथ्य मिले,
नहीं कहीं संस्कार मिला।
नारी ने ही लगाया हलन्त!
मुद्दों को देखा ज्वलन्त!
कली से नहीं है फूल खिला।
खिलना था जो धूल मिला।
पोषण उसको मिल न सका,
गरीबी का उसे मिला सिला।
सर्दी से हैं बजे दन्त!
मुद्दों को देखा ज्वलन्त!
प्रेमी ने तन ही पाया।
झूठा ही गाना गाया।
विश्वासों पर घात किया,
जीवन रस सब लूट लिया।
बन नहीं पाया कभी कन्त!
मुद्दों को देखा ज्वलन्त!
सर्दी से भीषण वार मिला।
धोखे को समझा, प्यार मिला।
चुन-चुन कैसे धाव दिए,
उसका उसका यार मिला।
षड्यंत्रों का नहीं अन्त।
मुद्दों को देखा ज्वलन्त!
नहीं कहीं है यार मिला।
कानूनों का भार मिला।
उसने भी भीषण वार किया,
अपना समझा यार मिला।
प्रेम नहीं दिखता दिगंत।
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