खुद हारकर, दुनिया जीती
धन संपदा बहुत कमाई।
सोचो लारी कब थी गाई?
प्रेम भाव है, कहाँ खो गया?
हावी, पेशेवर
चतुराई।
स्पर्धा के पथ पर नारी।
भूल रही, अपनी ही पारी।
मातृत्व का भाव मर रहा,
प्रतियोगिता की है तैयारी।
युवावस्था संघर्ष में बीती।
प्रौढ़ अवस्था रीती-रीती।
शादी के सपने भी खोये,
खुद हारकर, दुनिया जीती।
प्रेम भाव था प्रस्फुट होता।
कैरियर में था लगाया गोता।
स्थिर हुई, अधिकारी बनकर,
घर का डूब गया है, लोटा।
सखी-सहेली, सजना, संवरना।
बहाने बनाकर, पिय से मिलना।
हिसाब किताब में सब छूटा,
संबन्धों को, प्रेम से सिलना।
बच्ची खोई, किशोरी भी छूटी।
युवती, जीवन रण
ने लूटी।
काम करन को बाहर निकली,
बुद्धि से जीती, दिल से टूटी।
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