दहेज रहित शादी का संकल्प
/डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
मनोज विद्यार्थी जीवन से ही सिद्धांतों के आधार पर जीवन जीने का प्रयास करता रहा था। उसका विचार था कि व्यक्ति को दिखावे का जीवन नहीं जीना चाहिए। प्रदर्शन व दिखावे की प्रवृत्ति ही तनाव को जन्म देती है। व्यक्ति जो कहता है वही करे, जो करता है वही बोले और जैसा है, वैसा दिखे तो उसे तनाव का सामना नहीं करना पड़ेगा। पारदर्शिता व्यक्ति की पवित्रता की सबसे अच्छी व सच्ची कसौटी है। विद्यार्थी जीवन में दहेज के विरोध में अपने मित्रों के साथ विचार-विमर्श होता था। मनोज पर्दा प्रथा के भी खिलाफ था। इसी क्रम में दहेज विरोधी मोर्चा बनाने का भी प्रयास किया था। इसी वैचारिक मन्थन के दौरान अपने एक सहपाठी के साथ ऐसी शादियों में न जाने का संकल्प किया था, जिनमें दहेज का लेन-देन होने की संभावना है या दुल्हन को पर्दा प्रथा पालन करने के लिए मजबूर किए जाने की संभावना है। सामाजिक संगठन में काम करते हुए प्रारंभ में शादी न करने का भी विचार था। समय के साथ काम करने के सिलसिले में जब दूर प्रदेश में था। वहीं एक अनपढ़, विजातीय, विधवा महिला से मुलाकात हुई जो जीवन से निराश हो चुकी थी और एक आश्रम में रह रही थी। मनोज ने उसे  पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रोत्साहित किया। इस कार्य में स्वयं आर्थिक सहयोग देने का भी प्रस्ताव किया। मनोज ने उस महिला से कहा था कि वह उसे वह सभी सुविधाएं देने का प्रयास करेगा जो पढ़ने के लिए अपनी बहन को देने का प्रयास करता है  उस महिला को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह इस उम्र पर पढ़ सकती है और कोई व्यक्ति इस प्रकार लम्बे समय तक आर्थिक सहयोग करता रहेगा। वह महिला असुरक्षा की भावना से घिरी हुई थी। अतः उस महिला ने मनोज के सामने शादी का प्रस्ताव रखा जिसे दया और करूणा जैसी भावनाओं के वशीभूत मनोज ने बिना उचित-अनुचित का विचार किए स्वीकार कर लिया।
 
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