Wednesday, June 28, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२"

शादी के बाद मनोज ने उसको पढ़ने को मजबूर किया। दसवीं, बारहवीं कराते-कराते ही मनोज को स्पष्ट होने लगा था कि उसने गलती कर दी है। दया और करूणा के आधार पर किसी से शादी नहीं की जा सकती। शादी के लिए गंभीरता पूर्वक समान स्तर, भावों व विचार मिलने पर विचार करने की आवश्यकता पड़ती है। प्रतिदिन होने वाली कलह के प्रभाव से बचाने के लिए उसे डेढ़ वर्ष के बच्चे को अपने माँ-बाप के पास छोड़ना पड़ा। खैर तीन-चार वर्ष साथ रहते हुए मनोज को स्पष्ट हो गया कि  पति-पत्नी के रूप में सम्बन्धों का निर्वाह संभव नहीं है। मनोज नहीं चाहता था कि जिस स्त्री के साथ पति-पत्नी के रूप में जीवन निर्वाह के बारे में सोचा था, उससे अलग होते हुए दुश्मन बना जाय। वह स्पष्ट रूप से सोचता था कि पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाते हैं, यदि वे साथ न रह पाये ंतो एक-दूसरे के दुश्मन क्यों बने? क्यों न समझदारी का परिचय देते हुए बिना किसी पर अदालत में मुकदमेबाजी करते हुए आपसी सहमति से अलग हो जायँ। वह कल्पना नहीं कर पाता था कि एक-दूसरे के साथ नहीं रह पाये तो एक-दूसरे के खून के प्यासे कैसे हो जाते हैं? एक-दूसरे को जेल में भिजवाने के बारे में कैसे सोच सकते है? ऐसा केवल वही सोच सकता है जो केवल हिंसक प्रवृत्तियों को अपने अन्दर छिपाये है। सज्जनता और दुष्टता की यहीं से पहचान होती है। जिसने कभी एक क्षण को भी किसी को प्यार किया है, वह उसके खून का प्यासा कैसे हो सकता है? वह उसको किसी भी प्रकार की हानि पहँुचाने या जेल भिजवाने के षडयंत्र कैसे रच सकता है? दूसरे को परेशान करने के लिए ही कोई कार्य करना, जिसे आपने कभी प्रेम का इजहार किया हो, वह कैसा प्यार? इस विचार को अपनी भूत-पूर्व पत्नी को समझाने में मनोज को लगभग पाँच-छह वर्ष लगे। इस दौरान उसकी पत्नी भी एम.ए. कर चुकी थी। बात उसके भी समझ में आ गयी और दोनों ने आपसी बातचीत के द्वारा अलग हो जाने का फैसला किया और तलाक ले लिया।

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