Thursday, June 15, 2017

बचें परिवर्तन के दंभ से

संसार में सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि कोई भी व्यक्ति अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं है। अधिकांश व्यक्ति असंतुष्टि के साथ जीते हैं। हमारे आसपास की सभी व्यवस्थाएं हमें अधूरी या अपूर्ण लगती हैं। हम कितने भी अज्ञानी या ज्ञानवान हों, हमें लगता है कि संसार में बहुत कुछ सही नहीं चल रहा है। इसे बदलने की आवश्यकता है। हमें अपने मित्रों में बुराई नजर आती हैं, उनके कार्य व्यवहार में सुधार करने की अनेक संभावनाएं नजर आती है। परिवार में अनेक खामियां नजर आती हैं और प्रतीत होता है कि यदि मैं घर का मुखिया होता तो ऐसा करता। मैं गाँव का प्रधान होता तो ऐसा करता, मैं राज्य का मुखिया होता तो ऐसा करता या मैं देश का प्रधानमंत्री होता तो ऐसा करता। हमें सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में अनेकों खामियां नजर आती हैं। अधिकांश व्यक्तियों के पास ढेरों सुझाव होते हैं, वे अपने सुझावों को दूसरों के लिए उपयोगी समझते हैं और चाहते हैं कि लोग उनके उन विचारों और सुझावों पर काम करें; जिन पर स्वयं उन्होंने कोई काम नहीं किया है।
                असंतुष्टि के भी दो पहलू होते हैं। असंतुष्टि ही उद्यमिता को जन्म देती है। असंतुष्टि ही कार्य करने के लिए प्रेरित कर विकास का आधार बनती है तो दूसरी ओर असंतुष्टि ही निराशा से अवसाद अपराध की ओर कदम बढ़ाती हैं। कई बार व्यक्ति असंतुष्टि से उपजे अवसाद के कारण आत्महत्या तक कर लेता है। वस्तुतः यह व्यक्ति के ऊपर निर्भर है कि वह असंतुष्टि को किस प्रकार लेता है। असंतुष्टि विकास का आधार बनती है। यदि हम वर्तमान स्थिति से संतुष्ट हो गये तो विकास कैसे करेंगे? प्रसिद्ध गजलकार दुष्यन्त कुमार की भाषा में-
हो कमीज तो पैरों से पेट ढक लेंगे।
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।।

वास्तविक रूप से विकास के पथ के लिए संतुष्ट हो जाने की प्रवृत्ति किसी भी प्रकार से उचित नहीं कही जा सकती। असंतुष्टि से ही संतुष्टि प्राप्त करने के लिए विकास पथ मिलता है। व्यक्ति असंतुष्टि से संतुष्टि प्राप्त करने के लिए ही जीवन भर कर्मो में लीन रहता है।

                                    क्रमशः जारी..............................................

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