Thursday, May 18, 2017

काश दूध बन जाती

17.05.17
सुनो,
तुम्हें सिर्फ़
और सिर्फ़ प्रेम-
प्रेम और प्रेम...
ही दिखता है????
मेरी गहरी आँखों की
गहराई में,
डूबते उबरते हो न तुम,
हमेशा
मुझमें,
मुझको ही ख़ोजते रहते हो,,
सदा से ही तुम,
मगर
मैं हमेशा
तुम्हें मिलती हूँ-
उस कटे पेड़ की पीड़ा में
जिसकी छोटी सी टहनी भी
परोपकार को उतावली हो
फल जाती है कुछ फल
मरने से पहले......
मिलती हूँ मैं तुम्हें
उन सूखे स्तनों में
जिनकी चाहत है कि
ख़ून की हर बूँद भी
काश दूध बन जाती
और
एक बच्चा शायद भूखा
न मरता.....
मुझे तुम पाते ही हो हमेशा-
उस बूढ़ी माँ की
फटी बिवाइयों में
जो रिसते दर्द औ' ख़ून को
प्लास्टिक की बोतल का
सहारा दे
किसी तरह लंगड़ाती है.....
सुनो
मेरी आँखों की गहराई में छुपी पीड़ा
तुम क्यों नहीं देखते
कुछ गहरे उतरो न कभी तो
मुझमें तुम
मैं तल पर ही मिलूँगी तुम्हें
कभी पूरा डुबो तो सही,,,,,

शुचि भवि.................        फ़ेसबुक से साभार

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