Monday, May 15, 2017

सबकी अपनी राह है, सबकी अपनी चाह

खड़े बीच बाजार में, ना है कोई चाह।

सुन्दर की पहचान ना, चलते हैं बस राह॥



नहीं किसी से प्रेम है, नहीं है कोई भय।

बतियाते सबसे चलो, यही जीवन की लय॥



हम जिस पथ के पथिक है, साथ न कोई आय।

धोखा देकर साथ का, चोट मारकर जाय॥



सबसे गहरा घाव दे, विश्वासघात की चोट।

हमने इसको भी सहा, ना विश्वास को वोट||



केवल पुस्तक मित्र है, राह रही आवास।

साथी आयें, छोड़ दें, अपना यही लिवास॥



साथ हमारे वह चले, जिसको और न चाह।

झूठ कपट को छोड़कर, सच को कहता वाह॥



वर्षों हमें हैं हो गये, पग-पग फ़सते जाल।

फ़सता है वह ही यहां, चलता टेढ़ी चाल॥




हम पर अब तक ना चला, कभी किसी का जाल। 

कोई उसका क्या करे, जो खुद का ही काल॥



नहीं चाह हमको मिलें, धन, पद, यश, सम्बन्ध।

चाह हमारी एक ही, मिले न मन का अन्ध ॥



सबकी अपनी राह है, सबकी अपनी चाह।

धोखा देते फ़िर रहे, स्वयं मिलत है आह॥



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