Thursday, May 11, 2017

करवा चौथ व्रत करे, पति का मूल विनाश



धन को ठग हैं लूटते, लुट न सके विशवास।

जो विश्वास को लूटते, कोई आस न पास॥


प्रेम भाव इस जगत में, छीन सके ना कोय।

जिसको है यह मिल गया, चाह और ना होय॥


प्रेम समर्पण करत है, छीन किया बेहाल।

सीधे पथ के पथिक हम, तुम्हारी टेढ़ी चाल॥


धोखा देकर फ़ांसकर, किया बड़ा उपकार।
मोह पाश से छूटकर, कर्म करें साकार॥

चाहा था खुश रख सकें, साथ साथ हो व्यस्त।
छलना कर तुमने किया, सुख्ख हमारा अस्त॥

पत्नी बन कर छल रहीं, पति से खेलें खेल।
यारों संग मस्ती करत, शौक बनात रखेल॥

मस्ती में व्रत करत हैं, मस्ती के उपवास।
करवा चौथ व्रत करे, पति का मूल विनाश॥

झूठ बोलते, ठगत नित, लें ईश्वर का नाम।
धन की खातिर बेचते, इज्जत औ ईमान॥

चाहा था अब करेंगे, कुछ उपयोगी कर्म।
हवन करते हाथ जले, बचा रहे अब चर्म॥

चिन्तन मन्थन व दर्शन, हमारे हुये फ़ेल।
नारी के षडयन्त्र फ़स, चख कानूनी खेल॥

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