Saturday, June 17, 2017

परिवर्तन का दंभ - १

असंतुष्टि का दूसरा पहलू निराशा से अवसाद की ओर ले जाकर आत्महत्या तक का सफर है। इससे निजात पाने के लिए भारतीय आध्यात्म दर्शन अचूक औषधि है। जब व्यक्ति अपनी स्थिति को भाग्य मानकर स्वीकार कर लेता है, तब असंतुष्टि का स्वयं ही शमन हो जाता है। मलूकदास का मंत्र अवसाद से बचने का सबसे अच्छा साधन है-
अजगर करे चाकरी, पक्षी करे काम।
दास मलूका कह गये, सबके दाता राम।।
इस प्रवृत्ति को स्वीकार कर लेने से किसी प्रकार की असंतुष्टि का प्रश्न ही नहीं उठता। व्यक्ति जैसा भी है, जहाँ भी है, वहीं संतुष्टि प्राप्त कर लेता है। ऐसी स्थिति में विकास के पथ की कल्पना ही नहीं की जा सकती। विकास के पथिक को तो दुष्यन्त कुमार के संदेश पर ही आगे बढ़ना होगा-
कौन कहता है आसमां में छेद नहीं हो सकता?
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
असंतुष्ट होकर विकास के पथिक बहुत कुछ करना चाहते हैं। वे क्रांतिकारी परिवर्तन के राही होते हैं। केवल भौतिक विकास ही नहीं सामाजिक क्षेत्र, राजनीतिक क्षेत्र सहित सभी क्षेत्रों में परिवर्तन का बिगुल बजाने वालों की भी कोई कमी नहीं है। वे लोग चाहते हैं कि सभी कुछ रातों रात बदल जाय और सब कुछ उनकी इच्छानुसार चले। किशोरावस्था और युवावस्था में परिवर्तन करने के असीम सपने होते हैं। पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक आर्थिक सभी क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन करने का आह्वान करने वाले व्यक्तियों की फौज आपको अपने आसपास पर्याप्त मात्रा में मिल जायेगी। परिवर्तन के ऐसे यौद्धाओं की बहुलता है, जो संपूर्ण समाज को अपने अव्यावहारिक सिद्धांतों के अनुसार बदलने की कामना करते हैं किंतु अपने आपको उन सिद्धांतों के अनुकूल नहीं समझते। कहने का मतलब वे दुनिया को बदलना चाहते हैं किंतु स्वयं अपने आप को बदलने को तैयार नहीं होते। दूसरों से ईमानदारी की अपेक्षा करते हैं किंतु स्वयं अपने आपको उस मार्ग पर चलने में असमर्थ पाते हैं। मुझे हँसी आती है, अरे भाई! जो सिद्धांत आप दूसरों को बता रहे हो; पहले उसको अपने व्यवहार में लाकर उसकी सत्यता और व्यावहारिकता तो सिद्ध करो। तभी तो दूसरे लोग आपकी बातों को सुनने को तैयार होंगे।

ऐसा नहीं है कि सभी लोग दूसरों से ही परिवर्तन करने की अपेक्षा करते हैं। आपको ऐसे उत्साही व्यक्तियों के भी दर्शन हो जायेंगे जो घर फूँक तमाशा देखने को भी तैयार रहते हैं। वे सोचते हैं कि वे जो चाहे कर सकते हैं। वे संपूर्ण दुनिया को बदलकर एक आदर्श सुंदर दुनिया में परिवर्तित कर सकते हैं। किंतु यह यथार्थ से कोसों दूर है। संसार में कोई किसी को भी बदल नहीं सकता। हम केवल अपने आपको बदल सकते हैं। हम अपने आपको ईमानदार बना सकते है किंतु दूसरे को नहीं। ईमानदारी अपने अंदर से विकसित होती है कोई भी बाहरी शक्ति किसी को ईमानदार नहीं बना सकती। हम दूसरों को तो क्या अपने विद्यार्थियों और अपनी संतानों को ईमानदार नहीं बना पाते। दुनिया को बदलने की तो बात ही क्या है? वास्तव में दुनिया को बदलना किसी भी व्यक्ति के वश की बात नहीं। व्यक्ति बदल सकता है किंतु सृष्टि नहीं। अतः हमें परिवर्तन करने के दंभ से बचना होगा। दुनिया को बदलने के दंभ में हम अपने आपको बदल सकने के अवसर को भी गंवा सकते हैं।
----------------------------क्रमशः..............जारी------------

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