राजस्थान में सेवाकाल
के दौरान एक
साथी शिक्षक श्री
गजेंद्र जोशी एक
कहानी सुनाया करते
थे। वह यथार्थ
का चित्रण करती
है। जोशी जी
के अनुसार - एक
राजा अपने सेनापति
और महामंत्री के
साथ भ्रमण पर
निकले। भ्रमण करते हुए
राजा को एक
स्थान बड़ा मनोरम
लगा। राजा को
ख्याल आया कि
इस स्थान पर
एक तालाब का
निर्माण किया जाय
जिसमें दूध भरा
हो तो कितना
अद्भुत दृश्य होगा! उसने
सोचा, एक सुन्दर
तालाब का निर्माण
करके अपने राज्य
के सभी ग्वालों
को कहा जाय
कि वे भोर
की वेला में
एक बार दूध
तालाब में डालें।
राज्य में इतने
ग्वाले हैं कि
तालाब दूध से
भर जायेगा जो
संपूर्ण दूनिया में अनुपम
होगा। राजा ने
अपना विचार महामंत्री
व सेनापति के
सामने रखा। सेनापति
को तो आज्ञापालन
की शिक्षा मिली
थी। उसे क्या
बोलना था। महामंत्री
ने हाथ जोड़कर
विनती की, ‘महाराज!
तालाब बनाने का
विचार अत्युत्तम है
किंतु महाराज तालाब
दूध का नहीं,
पानी का होता
है।’
राजा ने महामंत्री
की तरफ कड़ाई
से देखते हुए
कहा, ‘नहीं, महामंत्री।
हमारे राज्य का
तालाब अनूठा होगा।
हमने निर्णय ले
लिया है। राजाज्ञा
का पालन सुनिश्चित
करिये।’
राजकोश से पर्याप्त
धन जारी करते
हुए बड़े ही
सुन्दर तालाब का निर्माण
कराया गया। संध्याकाल
में पूरे राज्य
में मुनादी करवा
दी गई जिसके
अनुसार राज्य के सभी
ग्वालों को आदेश
दिया गया कि
प्रातःकाल भोर होने
से पूर्व सभी
ग्वाले अपना-अपना
दूध तालाब में
भर दें। दूसरे
दिन भोर होने
से पूर्व ही
एक ग्वाला आया।
उसने सोचा सभी
तो दूध डालेंगे
ही, यदि मैं
दूध के स्थान
पर पानी डाल
दूँ तो क्या
फर्क पड़ेगा और
क्या किसी को
पता चलेगा? इसी
प्रकार सभी ग्वाले
आये और सभी
ने उसमें चुपके
से पानी डाल
दिया।
सुबह राजा
अपने महामंत्री और
सेनापति के साथ
तालाब का निरीक्षण
करने निकले। तालाब
को देखकर वे
आश्चर्यचकित रह गये
और आग बबूला
हो उठे। तालाब
एकदम साफ और
स्वच्छ निर्मल जल से
लबालब था। राजा
संपूर्ण ग्वाला समाज को
दण्डित करने की
घोषणा करने वाले
ही थे कि
महामंत्री हाथ जोड़कर
खड़े हो गये
और बोले, दुहाई
है अन्नदाता की।
मैंने पूर्व में
भी प्रार्थना की
थी कि तालाब
तो पानी का
ही होता है।
महाराज प्रकृति के विरुद्ध
व्यवस्थाएँ नहीं चलाई
जा सकती। राजा
समझ गया और
मुस्कराकर रह गया।
यह बड़ी
ही शिक्षाप्रद कहानी
है। परिवर्तन के
कितने भी प्रयास
किये जायँ किंतु
दुनिया नहीं बदल
सकती। दुनिया में
सभी रंग हैं।
यह विविध रंगों
से परिपूर्ण है।
इसमें सभी गुण
है तो सभी
अवगुण भी हैं।
दुनिया तो क्या
संसार में कोई
भी व्यक्ति नहीं
मिलेगा जिसमें कोई अवगुण
न निकाला जा
सके और न
ही ऐसा व्यक्ति
मिलेगा जिसमें कोई गुण
न हो। दुनिया
में ईमानदारी भी
है और बेईमानी
भी; सत्य है
और असत्य भी;
सदाचार भी है
और दुराचार भी;
सज्जनता भी है
और दुष्टता भी।
दुनिया विविधता पूर्ण रंग
बिरंगी है जिसमें
सभी रंग हैं
और सदैव रहेंगे।
किसी भी रंग
को नष्ट करना
संभव नहीं। हाँ!
मात्रा को कम
या अधिक किया
जा सकता है।
हम अपने लिए
रंगों का चुनाव
कर सकते हैं
किंतु अन्य रंगों
को दुनिया से
समाप्त नहीं कर
सकते।
जब हमारा
राजनीतिक नेतृत्व अपराधमुक्त शासन
देने की बात
करता है तो
वह असंभव बात
कह रहा होता
है। किसी भी
स्थिति में अपराध
को समाप्त नहीं
किया जा सकता।
हाँ! अपराध को
कम किया जा
सकता है। शासन
की लापरवाही और
कानून व्यवस्था की
लापरवाही से अपराध
बढ़ सकते हैं
और अधिक सक्रिय
और सावधान रहकर
अपराध कम किये
जा सकते हैं।
किंतु अपराधों को
सिरे से समाप्त
करना संभव नहीं।
यह प्रकृति के
खिलाफ है। प्रकृति
में से किसी
भी रंग को
समाप्त नहीं किया
जा सकता। इसी
प्रकार भ्रष्टाचार मुक्त शासन
का दंभ भी
खोखला ही साबित
होगा। भ्रष्टाचार को
समाप्त करना भी
असंभव है। हाँ!
श्रेष्ठ कानून व्यवस्था और
चुस्त दुरुस्त प्रशासन
की सहायता से
भ्रष्टाचार कम किया
जा सकता है।
कोई व्यक्ति कितना
भी सक्षम हो,
वह अपने आप
को ईमानदार बना
सकता है किंतु
अन्य सभी लोगों
को ईमानदार नहीं
बना सकता। हो
सकता है कि
कुछ लोग मजबूरी
में ईमानदार होने
का दिखावा करें
किंतु अवसर पाते
ही वे अपने
पुराने रंग में
वापस आ जाते
हैं। अतः परिवर्तन
के प्रयास करना
अच्छी बात है
किंतु दूसरों को
बदलने का दंभ
पालना किसी भी
प्रकार उचित नहीं
है। राम, कृष्ण,
ईसा और मुहम्मद
पैगम्बर जैसे महापुरूष
संसार से बुराइयों
को जड़ से
नहीं मिटा सके।
उन्होंने अपने प्रयास
किए उनके तात्कालिक
परिणाम भी निकले।
उनके कार्यो के
लिए ही हम
आज भी उन्हें
याद करते हैं।
किंतु बुराइयों का
उन्मूलन न तो
हुआ और न
संभव है। हाँ!
बुराइयों पर नियंत्रण
के लिए अविरल
प्रयास करते रहने
की आवश्यकता है।
वे प्रयास सदैव
किए जाते रहेंगे।
अच्छाई और बुराई
का संघर्ष सदैव
चलता रहा है,
अभी भी चल
रहा है और
सदैव चलता रहेगा।
हमें केवल अपने
पक्ष का निर्धारण
करना है। हिंदु
धर्म ग्रन्थों में
इसे देव और
असुरों का संघर्ष
कहा गया है
तो अन्य धर्म
ग्रन्थों में भी
विभिन्न नामों से सम्मिलित
किया गया है।
*जवाहर
नवोदय विद्यालय, महेन्द्रगंज,
साउथ वेस्ट गारो
हिल्स-794106 (मेघालय)
चलवार्ता 09996388169 ई-मेलः santoshgaurrashtrapremi@gmail.com,
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