Friday, September 8, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२५"

मनोज ने  इण्टरनेट पर अफजल की खोज प्रारंभ की। फेसबुक पर अफजल का खाता भी मिल गया। उसे मित्रता का निवेदन भेजा जिसे अफजल ने अगले ही दिन स्वीकार कर लिया। उसके बाद मनोज ने सर्वप्रथम अफजल को अपना वास्तविक परिचय देकर उससे माया की जाति के बारे में पूछा। वस्तुतः माया व उसके भाई ने शादी के प्रोफाइल में अपने आप को ब्राह्मण बताया था किंतु मनोज को विश्वास हो गया था कि वे ब्राह्मण नहीं है। उसने माया के एक आवेदन में अनुसूचित जाति लिखी देख ली थी। अफजल ने एक-दो दिन बाद ही उत्तर दे दिया कि माया हरिजन है। मनोज आश्चर्यचकित रह गया। व्यक्ति शादी विवाह के मामले में भी झूठ का सहारा क्यों लेते हैं? झूठ पर आधारित शादी में विश्वास कैसे पैदा होगा? विश्वास रहित शादी कैसी शादी? जब षड्यन्त्र रच कर झूठ के आधार पर शादी के लिए किसी फँसाया जायेगा, तब उनमें पति-पत्नी के रिश्ते का जन्म ही कहाँ हुआ? वह तो रिश्ते का अपहरण है। वहाँ तो अपहरणकर्ता और अपहर्ता का संबन्ध बनता है। धोखा खाने वाला और धोखेबाज का संबन्ध बनता है। शिकार और शिकारी का संबन्ध बनता है। पीड़ित और पीड़ादाता का संबन्ध बनता है। और ऐसे सम्बन्धों में जीवनभर साथ रहना जीवन को नर्क बनाने के सिवाय और क्या हो सकता है? माया ने ऐसा ही किया था किंतु मनोज को लगता था कि माया इतनी मूर्ख तो नहीं थी कि वह पत्नी बनकर रहने के लिहाज से आयी थी। मनोज ने अपने प्रोफाइल पर पहले ही लिख दिया था कि किसी भी प्रकार का झूठ वह बर्दाश्त नहीं कर सकता। यदि शादी के बाद किसी भी प्रकार का झूठ पकड़ा गया तो शादी नहीं चलेगी। इससे स्पष्ट था कि माया जानबूझकर षडय्ंत्रपूर्वक ठगने के लिए आयी थी।
इधर मनोज ने अफजल से जानकारी जुटाने के लिए प्रयास किए, उधर अफजल व माया को बातचीत करने की खुली छूट दे दी। मनोज नहीं चाहता था कि दो प्रेमियों को बातचीत करने से रोका जाय। वह तो चाहता था कि वे दोनों अब भी आपस में शादी कर लें। मनोज ने अफजल को विश्वास में लेकर जानकारी लेने के प्रयास में सर्वप्रथम अफजल से उसका ई-मेल पता हासिल किया। माया ने अफजल से छिपकर शादी की थी। माया ने अपनी शादी के बारे में अपने प्रेमी को बताया भी नहीं जिसके साथ पिछले दस वर्षो से उसके मानसिक, भावनात्मक व शारीरिक संबन्ध थे। यह बात अफजल को नागवार गुजरी और वह माया के धोखे के बारे में सब कुछ बताने के लिए राजी हो गया। अफजल उन प्रेमियों में से न था, जो प्रत्येक स्थिति में अपनी महबूबा की खुशी व कल्याण चाहते हैं। अफजल तो उन प्रेमियों में से था, जो सोचते हैं कि मेरी नहीं हुई तो किसी की भी नहीं होने दूँगा। इसी उद्देश्य को लेकर अफजल ने इण्टरनेट से ही मनोज का मोबाइल नम्बर हासिल करके मनोज को फोन करके माया से बात करना प्रारंभ किया। मनोज को माया का चरित्र पहले ही संदिग्ध लग रहा था। माया प्रत्येक काम में झूठ ही बोलती थी। अतः यह तय था कि माया मनोज की पत्नी नहीं धोखेबाज ठगिनी है। मनोज को अनेक कहानियाँ स्मरण हो आयीं जिनमें पत्नियों ने अपने प्रेमियों के साथ मिलकर न केवल पति वरन अपने सगे बच्चों की भी हत्याएं की थी। मनोज के मन में स्पष्ट हो चुका था कि माया धन के लिए कुछ भी कर सकती है। वह धन ही था, जिसकी खातिर माया ने शादी से पूर्व ही धोखा दिया था। माया ने अपना बैंक खाता बंद करके धनराशि अपनी माताजी के खाते में जमा कराने की सूचना दी थी, जिसके आधार पर मनोज विवाह हेतु आर्यसमाज मंदिर में पहुँचा था। वह सूचना भी झूठी थी, माया ने खाता बन्द कराया ही न था। इससे स्पष्ट है कि माया को संबन्ध से ज्यादा पैसा प्यारा था, जिसे वह अपनी माँ या भाई को भी न दे सकी। मनोज के दृष्टिकोण से झूठ पर आधारित शादी के सभी संस्कार व्यर्थ हो गये।

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