कैसा बसन्त?
कोयल की ये मधुर मल्हारें,
उसको लगतीं करुण पुकारें,
सबसे यही मनोती मॉगे,
प्रियतम आकर उसे दुलारें।
इन्द्रधनुष की सभी छटाएं,
उसको अंगारे बरसाएं,
कैसा बसन्त वह क्या जाने,
निशा वियोग की जिसे सताएं।
काक तू वैरी रोज पुकारे,
प्रियतम कौ सन्देश सुना रे,
मुझ विरहनि को धीर बधा के,
अपनी बिगड़ी जात बना रे।
“दिल की टेढ़ी-मेढ़ी राहें”
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रोहन एक सफल व्यवसायी था, जो अपने काम में इतना व्यस्त था कि उसे अपने जीवन
में प्रेम की कमी महसूस नहीं होती थी। प्रेम तो क्या रोहन के पास सुख-दुख की
अनुभूति ...
1 day ago

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