Friday, February 5, 2010

बेशर्म बसन्त



                      डॉ.सन्तोष  गौड़ राष्ट्रप्रेमी





बेशर्म बसन्त,


फिर आ गया तू


अकेला


क्या?


भूल गया


मैंने कितनी बार


लौटाया है तुझे


इस दरवाजे से


कितनी बार?


बताया है तुझे


घर पर नहीं हैं पिया,


अकेले,


किसी के स्वागत को,


करता न मेरा जिया


लगता है डर,


कांपता है दिल,


रोजगार की खातिर


परदेश में हैं कन्त


मेरे दुखों का है न अन्त


यदि,


चाहता है तू


मुझे सुख पहुंचाना


पिया को साथ लेकर,


मेरे घर आना।

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