Sunday, February 28, 2010

अबीर गुलाल उड़ाता आ रहा है फागुन

नचा रहा है फागुन




अबीर गुलाल उड़ाता आ रहा है फागुन


कितना प्यारा बसन्त ला रहा है फागुन


बाग बगीचे वाटिकाएं सभी लगते हैं रंगीले


जमीन पर आसमान पर छा रहा है फागुन






चहुं ओर है प्यार पावन होली के आने पर


उर-उर के तार झनका रहा है फागुन


नृत्य करती प्रकृति झूम कर चहुं ओर


गांव-गांव, जंगल-जंगल छा रहा है फागुन






कोयल करती शोर ,कैसा? नांच रहा है मोर


बाल-युवा-वृद्ध सबको, नचा रहा है फागुन


रंगो में हैं मस्त, बाल किशोर युवा और प्रौढ़,


कण-कण में अमृत रस झलका रहा है फागुन।

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

    आपको तथा आपके परिवार को होली की ढेरो शुभकामनाएं।

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