हलन्त
डॉ.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
कैसे?
मनाऊं बसन्त
विदेश में कन्त
न वियोग का अन्त
न जाने कहां?
भटकते होंगे पिया
जबसे हुए हैं सन्त
अधूरी हूं मैं
लगा है हलन्त!
आओ कुछ पग साथ चलें
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* जीवन का कोई नहीं ठिकाना, कैसे जीवन साथ चले?*
*जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥*
*चन्द पलों को मिलते जग में, फ़िर आगे बढ़ जाते है।*
*स्वार्थ स...
3 weeks ago
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