नयी प्रेरणा
फागुन है ऐसा मुस्काता
ज्यों कलियों में जीवन।
घर-घर सूरज है खिलता,
आंगन में सजता उपवन।
द्वार-द्वार है खुशी खेलती,
बाल वृद्ध सब हैं उत्साही।
कैसे घोल सकेगा कोई ,
इस उत्सव में स्याही।
लेकर नव संकल्प बढे़ हम,
नयी प्रेरणा होली से।
सबको ही बाटें मुस्कानें,
नहीं डरें हम गोली से।
स्वामी विवेकानन्द के दृष्टिकोण से
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धर्म
*स्वामी विवेकानन्द को हिन्दू संन्यासी कहना एकदम गलत होगा। वे संन्यासी तो
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क...
2 weeks ago
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