गले तो लगालो रे
राग द्वेष के तेल से, दीप जलाने वालो !
ईर्ष्या द्वेष की होली को जलाओ रे !
मत भूलो समानता भाई चारे को,
ठुकराये हुओं को गले तो लगाओ रे !
ईर्ष्या, द्वेष, असमानता से लाभ उठाने वालो,
कुछ रंग जीवन के, इनको भी दिखलाओ रे!
नहीं झेल पाओगे तुम, किंचित भी,
मत विद्रोह की आग, ह्रदय में जलाओ रे!
उगते हुए सूरज को, नमस्कार करने वालो!
अस्त होते सूरजों को भी, पथ दिखलाओ रे!
प्रेम, स्नेह के भाषण ही न देते रहो,
रंग में समरसता के, डुबकी लगाओ रे!
दुर्व्यवस्था फैला के, लाभ उठाने वालो!
समाज में सुव्यवस्था भी, तुम अब लाओ रे!
स्वार्थ को ही तुमने अब तक पाला पोसा,
उसकी अब होली भी, तुम ही जलाओ रे!
दीपावली! परंपरा नहीं, कर्म की प्रेरणा का अवसर
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दीपावली! परंपरा नहीं,
कर्म की प्रेरणा का अवसर
डा.संत...
19 hours ago
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