दस्तक
डॉ.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
फटे हुए चिथड़े
पहनकर
बीती है सर्दी
आंसुओं की धार पीकर
बीती है सर्दी
पिया के सपने
लेकर
बीती है सर्दी
लम्बी काली रातें
जागकर
बीती है सर्दी
कम्पन,ठिठुरन,
जकड़न में
बीती है सर्दी
न लौटे कन्त
बड़े बेदर्दी
दस्तक दे ले बसन्त
समझ गई मैं
सर्दी का हुआ अन्त
किन्तु दरवाजा न खुलेगा
जब तक
आयेंगे न मेरे कन्त!
महिला प्रगति में बाधक- दहेज, मेहर व निर्वाह भत्ता
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आचार्य प्रशान्त किशोर जी की पुस्तक ‘स्त्री’ पढ़ते समय एक वाक्य ने ध्यान
आकर्षित किया, *‘ये दो चीज हैं जो जुड़ी हुई हैं एक-दूसरे से और दोनों को खत्म
होना चा...
1 week ago
अमिट इंतज़ार...
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