बात बड़ी ही अजीब है,
रोशनी विश्वकर्मा
बात बड़ी ही अजीब है, दोस्त
मैं तुम्हारी बात बनाने का इरादा करती हूँ,
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी
मुझे दो कदम पीछे धकेल देती है I
मेरी चाहत मुझे ये कहती है ,
तुम्हे चाहने की एक कोशिश करूँ ,
मन में उठती तो है ,
तुम्हारी चाहत की तरंगे ,
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी ,
पल भर में शांत कर देती है,
मेरे मन की उठती उमंगें I
करना चाहती हूँ तुमसे प्यार,
पाना चाहती हूँ तुमसे दुलार ,
चाहती हूँ मना लो मुझे ,
जब भी हो जाऊँ मैं नाराज़ ,
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी
धकेल देती है मुझे दो कदम पीछे.
थाम कर हाथ तुम्हारे ,
चाहती हूँ पार करना ,
जिंदगी के उबड़ खाबड़ रास्ते I
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी
ले जाती है मुझे तुमसे दूर I
मन के किसी कोने में ,
जा कर छिप जाती है,
बचपन सी एक इच्छा ,
लग कर तुम्हरे सीने से ,
बांध लूँ तुम्हारे सांसों की
डोरी से अपनी सांसे ,
सुन लूँ तुम्हारे धडकनों की संगीत I
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी
मुझे तुमसे दूर जाने को कह देती है,
पर, क्या करूँ अपने दिल का ,
तुम्हरी बाँहों में आने को ,
मचल उठता है I
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी,
झटक देती है मुझे दूर से ही I
काश मना पाती मैं तुम्हारे दिल को .
खोल दो गिरह अपने मन का
अंदर आने का बता दो रास्ता ,
समा जाने दो मुझे अपने अंदर इस तरह ,
फूल और सुगंध हो जिस तरह I
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी,
दूर न कर दे मुझे तुमसे
कही ऐसा न हो ,
ढूढ़ते रह जाएँ तुम और मैं
एक दूजे की परछाई भी न मिले ,
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी।
अंदर आने का बता दो रास्ता ,
ReplyDeleteसमा जाने दो मुझे अपने अंदर इस तरह ,
फूल और सुगंध हो जिस तरह I
स्वागत!