Sunday, April 4, 2021

एकान्त और अकेलापन

 

एक समय था,

जब मैं चाहता था,

एकान्त।


तब कुछ पढ़ने की,

कुछ बनने की,

किसी को पढ़ाकर,

कुछ बनाने की,

तीव्र इच्छा, 

मुझे एकान्त के लिए,

मजबूर करती थी।


एक समय था,

जब साथी को चाह थी,

मेरे साथ की,

बेटे को चाह थी,

हर पल, हर क्षण,

हर दिन, हर राह,

मेरे साथ की

मुझसे दुलार की।


और मैं,

उन्हें आगे बढ़ाने,

उन्हें कुछ सिखाने,

अपना करियर बनाने,

के चक्कर में,

अपने आपको भूल गया!

पता ही नहीं चला,

कब अपनी राह भूला,

और ठहर गया।


और आज

जब साथी साथ मिलने का,

इंतजार करते-करते,

प्रतीक्षा से थककर,

आगे बढ़ गया।

दूसरे शब्दों में कहूँ,

साथ अलग हो गया।


और आज

हर पल, हर क्षण

हर राह,

साथ चाहने वाला बेटा,

साथ रहना भूलकर,

एकान्त के पथ पर,

बढ़ गया।

एकान्तवासी बन गया।


और आज

मैं एकान्त से भी,

ठुकराया गया,

अकेला रह गया।

एकांत और अकेलेपन

का अंतर समझ आ गया।

अनुभव से

कुछ ज्ञानवर्धन हो गया।


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