आत्म विकास नहीं कर पाते
ईर्ष्या, द्वेष, नफरत है दिल में, किंतु, प्रेम के गाने गाते।
सबके विकास की बातें करते, आत्म विकास नहीं कर पाते।।
करते रहे औरों की समीक्षा।
कैसे पूरी हो? फिर इच्छा।
सबको सीख देत हो क्षण-क्षण,
खुद ही, खुद की, ले लो परीक्षा।
भ्रष्ट आचरण, कर्महीन धन, उससे, कराते हो जगराते।
सबके विकास की बातें करते, आत्म विकास नहीं कर पाते।।
अहम ने, सबको, दूर भगाया।
दान के नाम, खुद को भरमाया।
खुद ही, खुद को, समझ न पाये,
पल-पल औरों को समझाया।
धैर्य, शान्ति की बातें करते, धैर्य बिना, कटें, खुद की रातें।
सबके विकास की बातें करते, आत्म विकास नहीं कर पाते।।
कर में जो है, यहीं है पाया।
सीख रहे जो, केवल माया।
खुद तो भ्रम में जीते हर पल,
औरों को भी, है भरमाया।
सच क्या है? ईश्वर कैसा? जाना न, किसी ने, केवल बातें।
सबके विकास की बातें करते, आत्म विकास नहीं कर पाते।।
No comments:
Post a Comment
आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.