Wednesday, March 31, 2021

नर क्या समझे

 

               नारायण को,  नारी ने भरमाया है


प्रकृति सृष्टि का गूढ़ तत्व है, समझ न कोई पाया है।

नर क्या समझे,  नारायण को,  नारी ने भरमाया है।।

नर, सागर की, गहराई नापे।

मौसम की कठिनाई भी भाँपे।

आसमान में उड़ता है नर,

इससे देखो, पर्वत काँपे।

नारी की मुस्कान ने जीता, प्रकृति की कैसी माया है।

नर क्या समझे,  नारायण को,  नारी ने भरमाया है।।

वेद ज्ञान से, भरे पड़े हैं।

कुरान और हदीस लड़े हैं।

नारी प्रेम की चाह में ये नर,

बुद्धिहीन से, पीछे खड़ें हैं।

सिद्धांत गढ़ो, कुछ भी कह लो, नर नारी का साया है।

नर क्या समझे,  नारायण को,  नारी ने भरमाया है।।

 उपदेश नहीं, कुछ कर दिखलाओ।

चाहो नहीं, बस प्यार लुटाओ।

सबको मुफ्त की सीख हो देते,

चलकर उन पर, खुद दिखलाओ।

छल, कपट, धोखे में फंसाकर, गान मिलन का गाया है।

नर क्या समझे,  नारायण को,  नारी ने भरमाया है।।


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