Saturday, March 27, 2021

समय का साधक, कर्म करे बस

 नहीं माँगता बस देता है।

  


अकेलेपन से जूझ रहे सब, साधक एकान्त का रस लेता है।

समय का साधक, कर्म करे बस, नहीं माँगता बस देता है।।

इक-दूजे से सब हैं जूझें।

मित्र कौन है?  कैसे बूझें?

प्रेम-प्रेम कह, लूट रहे नित,

भीड़ में अपना, ना कोई सूझे।

परिवार में ही महाभारत होता, अपना वही जो नाव खेता है।

समय का साधक, कर्म करे बस, नहीं माँगता बस देता है।।

खुद ही खुद से, जूझ रहे हम।

विश्वासघात नित, झेल रहे हम।

जिसको अपना साथी समझा,

घात से उसके, अचेत हुए हम।

विश्वास किया था, जिस पर हमने, चुंबन लेकर गला रेता है।

समय का साधक, कर्म करे बस, नहीं माँगता बस देता है।।

मित्र खोजना बंद करो अब।

अपने आपके मित्र बनो अब।

इसको-उसको, समय बहुत दिया,

खुद ही, खुद को, आज गढ़ो अब।

आगे बढ़कर,  पथ जो बनाये,  वही कहाता, प्रणेता है।

समय का साधक, कर्म करे बस, नहीं माँगता बस देता है।।


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