Monday, March 29, 2021

संग-साथ की इच्छा सबकी

किन्तु साथ कुछ को मिलता है

                  




पुष्प की चाह, सभी को होती, कुछ ही पल को वह खिलता है।

संग-साथ की इच्छा सबकी,  किन्तु साथ कुछ को मिलता है।।

चाहने से यहाँ, कुछ नहीं होता।

काटता है वही, जो व्यक्ति बोता।

कर्तव्य रहित अधिकार जो चाहे,

कदम-कदम वह, निश्चित रोता।

साथ उसी को, मिलता जग में, प्रेम सूत्र रिश्ते सिलता है।

संग-साथ की इच्छा सबकी,  किन्तु साथ कुछ को मिलता है।।

आकांक्षा और अभिलाषाएँ।

तरह-तरह की हैं आशाएँ।

चाहत किसी की पूरी न होतीं,

चुनौती देती, हैं निराशाएँ।

चाहत तजकर,  साथ निभाए, साथ उसी का, बस निभता है।

संग-साथ की इच्छा सबकी,  किन्तु साथ कुछ को मिलता है।।

प्रकृति का कण-कण साथ हमारे।

सुना न तुमने, हम थे पुकारे।

कर्तव्य पथ पर, बढ़ते रहेंगे,

मृत्यु भी, पग-पग, हमें दुलारे।

पथ ही साथी, जब हो पथिक का, ऐसे पथिकों से, जग हिलता है।

संग-साथ की इच्छा सबकी,  किन्तु साथ कुछ को मिलता है।।


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