Friday, March 26, 2021

प्रकृति के ही घटक हैं हम भी

 प्रकृति न हमसे न्यारी है

  


प्रकृति के ही घटक हैं हम भी, प्रकृति न हमसे न्यारी है।

महासागर,  पर्वतमालाएँ, प्रकृति ही,  नर और नारी है।।

प्रकृति का सूक्ष्म रूप है नारी।

ललित लालिमा कितनी प्यारी!

पर्वत हरीतिमा, ललचाती है,

गोलाइयों में, भटकाती नारी।

जीवन रस देती हैं नदियाँ,  पयस्वनी  माता नारी है।

प्रकृति के ही घटक हैं हम भी, प्रकृति न हमसे न्यारी है।।

प्रेम अश्रु में, डूबी नदियाँ।

सहनशील प्रथ्वी की तरियाँ।

प्रचण्ड अग्नि पुंज है नारी,

बाँह फैलाए, हैं वल्लरियाँ।

सर्पिल चितवन पर नर मर मिटता, वक्ष उरों पर आरी है।

प्रकृति के ही घटक हैं हम भी, प्रकृति न हमसे न्यारी है।।

पर्वतों को, धूल चटाता जो नर।

सागर विजयी, कहलाता जो नर।

नारी नयन के,  अश्रु बिन्दु में,

गल बह जाता, कठोर हृदय नर।

विश्वामित्र ऋषि, हत हो जाते, जब मार मेनका मारी है।

प्रकृति के ही घटक हैं हम भी, प्रकृति न हमसे न्यारी है।।

विकास के लक्ष्य, बड़े जो होते।

प्रकृति के साथ ही, पूरण होते।

नारी साथ मिल, इच्छाशक्ति से,

नर आनन्द के,  खोले सोते।

विध्वंस पथों पर सृजन सजाती, नर-नारी की यारी है।

प्रकृति के ही घटक हैं हम भी, प्रकृति न हमसे न्यारी है।।


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