Tuesday, March 16, 2021

हर प्राणी, चैन की नींद सोता है

 घर तो आखिर, घर होता है

               

हर प्राणी, चैन की नींद सोता है।

घर तो आखिर, घर होता है।।


कण-कण में, प्रेम है रमता।

दादी दुलार में बचपन पलता।

चंचलता अगड़ाई लेती जहाँ,

सीमा टूटतीं, युवा मचलता।

प्रेम के आँसू, जो रोता है।

घर तो आखिर, घर होता है।।


अभावों में भी जीवन खिलता।

टूटे दिलों को, प्रेम है सिलता।

मिट्टी में है प्रेम की खुशबू,

रोने में है, हास्य झलकता।

गुड्डे-गुड़ियों का ब्याह होता है।

घर तो आखिर, घर होता है।।


बचपन की शरारतें छिपी हुई हैं।

प्रेम इबारतें, लिखी हुई हैं।

दूर-दूर रह, दिल हैं मिलते,

दिल से दिल की, जमी हुई है।

अंकुर बढ़, पौधा होता है।

घर तो आखिर, घर होता है।।


युवा काम हित बाहर जाते।

बाहर रह कर, घर को चलाते।

यादों का अंबार, जमा जहाँ,

आते हैं, जब छुट्टी पाते।

घर चल, पगले, क्यों रोता है?

घर तो आखिर, घर होता है।।


घर छोड़ा, मजबूरी दाम की।

मिली न हमें मजदूरी नाम की।

सपने लेकर, शहर थे आए,

मिलती थी, मजदूरी काम की।

वापस, घर जाना होता है।

घर तो आखिर, घर होता है।।


समय बदला, फिजाएं बदलीं।

शहरों की अब, हवाएं बदली।

लाॅकडाउन ने जीवन रोका,

वापसी की अब, राह भी बदलीं।

हर, मजदूर मजबूर होता है।

घर तो आखिर, घर होता है।।


बची नहीं, अब छत की छाया।

ना कुछ पीया, ना कुछ खाया।

पैदल ही, अब राह नापनी,

साथ छोड़ता, विपत्ति में साया।

मर-मर कर जीवन बोता है।

घर तो आखिर, घर होता है।।


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