स्वागत में पति बैठे हैं।
बेटी को हम बेटी समझें, भार मान क्यूँ बैठे हैं।
कोरे हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।
जिस घर में है जन्म लिया।
जिस घर को है प्रेम दिया।
भूल से भी, ना कहना पराई,
बसता उसका वहाँ जिया।
बेटी है, पूरा हक उसका, सब उसके दिल में पैठे हैं।
कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।
बचपन में है प्रेम लुटाया।
किशोर अवस्था पाठ पढ़ाया।
कण-कण में अधिकार है उसका,
प्रेम से सींचा, प्रेम बढ़ाया।
दहेज का तो विरोध हो करते, संपत्ति दबाए बैठे हैं।
कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।
बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ।
सम्मान, साथ, अधिकार दिलाओ।
वारिस बेटियों को स्वीकारो,
सहभाग करो, सहभागी पाओ।
पितृ गृह में अधिकार हो पूरा, स्वागत में पति बैठे हैं।
कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।
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