प्रेम रंग से खिलता है
पल में तोला, पल में माशा, पल में मन बन जाता है।
पल में बोला, पल में खोला, पल में रिश्ता बन जाता है।
परिवर्तन है मूल जगत का, मानव पशु बन जाता है।
स्वारथ यहाँ पर प्रेम कहाता, प्रेमी मौत बन आता है।
आकर्षण होता है विष में, शातिर विश्वास जमाता है।
काले लोग हैं, काले दिल हैं, प्रेम ठगी का नाता है।
विश्वास से ही है धोखा होता, विश्वासघात कहलाता है।
नारी स्वार्थ बस, नारीत्व बेचती, वह धंधा बन जाता है।
कानूनों से खेल खेलते, जीवन खिलवाड़ बन जाता है।
शातिर औरत शिकार खेलती, मर्द शिकार बन जाता है।
झूठे दहेज के केस हैं होते, फर्जी, बलात्कार हो जाता है।
व्यक्ति और परिवाह हैं मिटते, विश्वास ढह जाता है।
विश्वास, प्रेम, निष्ठा से ही, समाज का आधार बनता है।
आस्था और समर्पण से, परिवार का आँगन सजता है।
तेरा-मेरा, अपना-पराया, रिश्तों का बाजा बजता है।
अधिकारों के संघर्ष से, घर का, ताना-बाना विखरता है।
कानूनों से प्रेम न उपजे, सिर्फ अपराध उपजता है।
रिश्तों का गुलदस्ता तो बस, प्रेम रंग से खिलता है।
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