दोहा छोटा छन्द है, अभिव्यक्ति का नूर।
चन्द पलों में ही बनें, सीख देत भरपूर॥१॥
चार चरण में बनत है, दो हैं विषम कहात।
मात्रा तेरह विषम में, ग्यारह सम में आत॥२॥
पहला तेरह से बने, ये है विषम कहात।
तृतीय भी तो विषम है, तेरह से ही बात॥३॥
दूजे को सम कहत हैं, ग्यारह में हो बात।
चौथा इसका मित्र है, एक प्राण दो गात॥४॥
दोहा सबका मित्र है, सरल, सहज ओ नीक।
राष्ट्र्प्रेमी की चाह, आओ सब लो सीख॥५॥
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