Thursday, November 14, 2024

राही हूँ,नहीं कोई ठिकाना

किसी से विशेष संबन्ध नहीं हैं

21.08.2024

राही हूँ, नहीं कोई ठिकाना, किसी से विशेष संबन्ध नहीं हैं।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई  बंध नहीं है।।

नहीं कोई अपना, नहीं पराया।

संबन्धों ने बहुत   लुभाया।

अपने बनकर ठगते ठग हैं,

प्रेम नाम पर बहुत सताया।

प्रेमी ही यहाँ, प्राण हैं हरते, कैसे कहूँ? संबन्ध  नहीं है। 

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई  बंध नहीं है।।

जिसको देखो, अपना लगता।

हाथ में आया, सपना लगता।

अपने ही हैं, गला रेतते,

जीवन अब, वश तपना लगता।

स्वार्थ से रिश्ते जीते-मरते, बची हुई कोई, सुगंध नहीं है।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई  बंध नहीं है।।

संबन्धों की कैसी माया?

झूठे ही संबन्ध  बनाया।

शिकार किया, फिर बड़े प्रेम से,

चूसा, लूटा और  जलाया।

छल, कपट और भले लूट हो, प्रेम की मिटती गंध नहीं है।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई  बंध नहीं है।।


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