Wednesday, June 15, 2016

उन अज्ञात भद्र महिला को प्रणाम।

सुखद अनुभव!

मित्रों! 

आज पूर्वाह्न लगभग 11 बजे बोटेनीकल मेट्रो रेलवे स्टेशन नोएडा पर 

काउण्टर संख्या 2 पर टोकन के लिए लाइन में लगा था। वहाँ पर ठीक

 मुझसे आगे एक लड़की, नहीं, लड़की कहना उचित सम्मान नहीं 


होगा; एक भद्र व आत्मसम्मान वाली महिला लगीं थीं। मैंने देखा 

हमारी पंक्ति के बगल में ही खिड़की के पास कुछ महिलाएँ भी खड़ी 

होकर टिकिट प्राप्त कर रही हैं। मैंने अपने आगे खड़ी महिला से कहा,

 ‘आप यहाँ क्यों परेशान हो रही हैं? आप महिलाओं की पंक्ति में 

जाकर अपना टिकिट क्यों नहीं ले लेतीं? उनके उत्तर से मुझे भारतीय

 महिलाओं पर गर्व हो चला। काश! अधिकांश महिलाएँ उस आत्मगौरव 

को प्राप्त कर लें। महिलाओं को सशक्त करने के लिए किसी कानूनी 

संरक्षण की आवश्यकता नहीं रह जायेगी। मुझे याद नहीं आज कितने 

दिनों बाद आनन्द की अनुभूति हुई।

       उन प्रेरणा प्रदान करने वाली अनुकरणीय महिला के उत्तर पर 

ध्यान दीजिए, ‘नहीं, वह लाइन नहीं है। वे महिलाएँ गलत ढंग से 

लाइन तोड़ रही हैं। किसी भी काउण्टर पर महिलाओं के लिए अलग 


लाइन की व्यवस्था नहीं है।’ वे उन महिलाओं पर नाराज भी हो रहीं थीं 

और अपना विरोध भी व्यक्त कर रहीं थीं। मैंने अन्य काउण्टरों की 

ओर नजर दौड़ाई तो वास्तव में किसी भी काउण्टर पर अलग लाइन 

नहीं थी। मुझे ध्यान आया। महिलाएं समान हैं। उनके लिए अलग 

काउण्टर क्यों होना चाहिए? वास्तव में अलग पंक्ति की कोई व्यवस्था 

नहीं है। 

विशेषाधिकार व कानूनी संरक्षण किसी को सशक्त नहीं बना सकता। 


सशक्त बनाते हैं आत्मगौरव के योग्य आचरण व समाज हित में किए 

गये कर्म। जो महिलाएँ महिला होने के कारण विशेषाधिकार प्राप्त करने

 का प्रयास करती हैं। वे वास्तव में महिलाओं के स्तर को और भी नीचे 

ले जा रही होतीं हैं। 

       पुनः उन अज्ञात भद्र महिला को प्रणाम। 


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