धन और पद ये जुटाते हैं
सभी प्रेम के गाने गाकर, नफरत चहुँ ओर लुटाते हैं।
जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।
संबन्धों के, भ्रम में, हम जीते।
सुधा के भ्रम, गरल हैं पीते।
कपट करें कंचन की खातिर,
खुद ही खुद को, लगाएं पलीते।
कंचन काया नष्ट करें नित, फिर कुछ कंचन पाते हैं।
जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।
प्रेम नहीं कहीं हैं मिलता।
फटे हुए को है जग सिलता।
नवीनता का ढोंग कर रहे,
जमा रक्त है, नहीं पिघलता।
अपनत्व ही जाल बना अब, अपना कहकर खाते हैं।
जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।
अपनों का हक मार रहे हैं।
संबन्ध इनकी ढाल रहे हैं।
स्वारथ पूरा करने को ही,
संबन्धों को साध रहे हैं।
अपना कह कर लूट रहे नित, अपना कह भरमाते हैं।
जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।
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