नहीं, प्रेम की, कोई सीमा, प्रेम, नहीं कोई बंधन है।
संबन्धों का मधु प्रेम है, संबन्धों को प्रबंधन है।।
प्रेम हमें हैं शेष जगत से।
केवल नहीं, किसी भगत से।
खुद ही खुद से प्रेम करें हम,
प्रेम नहीं है, किसी तखत से।
प्रेम सरोवर, वास हमारा, नहीं कोई यहाँ क्रंदन है।
संबन्धों का मधु प्रेम है, संबन्धों को प्रबंधन है।।
कपट झूठ का लेश नहीं है।
असंतोष यहाँ शेष नहीं है।
प्रेम नशीली वस्तु नहीं है,
प्रेमी कोई मदहोश नहीं है।
प्रेम में क्रोध नहीं होता है, प्रेम तो शीतल चंदन है।
संबन्धों का मधु प्रेम है, संबन्धों को प्रबंधन है।।
कपट जाल बिछाया तुमने।
कानूनों में, उलझाया तुमने।
प्रेम शब्द को, कलंकित करके,
बताओ प्यारी, क्या पाया तुमने?
प्रेम नहीं, हथियार लूट का, प्रेम, प्रेम का वंदन है।
संबन्धों का मधु प्रेम है, संबन्धों को प्रबंधन है।।
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