प्रेम ही है मंतव्य हमारा
प्रेम पथिक हूँ, प्रेम ही पथ है, प्रेम ही है गंतव्य हमारा।
प्रेम को नहीं, चाह प्रेम की, प्रेम ही है मंतव्य हमारा।।
प्रेम ही जीवन सार प्रेम का।
प्रेम न करता, वार प्रेम का।
देने की वश, चाह प्रेम में,
प्रेम न करे, इंतजार प्रेम का।
प्रेम तो केवल प्रेम ही करता, धोखे का यहाँ नहीं दुधारा।
प्रेम को नहीं, चाह प्रेम की, प्रेम ही है मंतव्य हमारा।।
प्रेम नहीं, परिधि में सीमित।
प्रेम नहीं करता है बीमित।
प्रेम प्रेम का गुलाम नहीं है,
प्रेम की सीमा, सदैव असीमित।
प्रेम तो केवल, प्रेम लुटाता, प्रेम न चाहे कोई सहारा।
प्रेम को नहीं, चाह प्रेम की, प्रेम ही है मंतव्य हमारा।।
प्रेम नहीं प्रेम को लूटे।
प्रेमी नहीं होते हैं झूठे।
प्रेम तो करता सहज समर्पण,
प्रेमी किसी को नहीं खसूटे।
प्रेम में, कानून न चलता, प्रेम नहीं है, गणित पहारा।
प्रेम को नहीं, चाह प्रेम की, प्रेम ही है मंतव्य हमारा।।
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