Sunday, April 10, 2022

विश्वास नहीं अब, खुद पर हमको

गुस्सा करना भूल गए


 तुमने प्रिये! आघात किया जो, हँसना-हँसाना भूल गए।

विश्वास नहीं अब, खुद पर हमको, गुस्सा करना भूल गए।।

हमने सब कुछ सौंप दिया था।

बिना जाँच विश्वास किया था।

तुमरे जाल में फंसा था ऐसा,

धोखे को सच मान जिया था।

प्रेम वचन जो मधुर थे उस पल, आज वही हैं शूल भए।

विश्वास नहीं अब, खुद पर हमको, गुस्सा करना भूल गए।।

चोट भले ही कितनी गहरी।

जिंदगी नहीं है, फिर भी ठहरी।

जिजीविषा अब भी जीवित है,

सच है हमारा आज भी प्रहरी।

उत्साह, आक्रोश, क्रोध था पल पल, निराश आज हम कूल भए।

विश्वास नहीं अब, खुद पर हमको, गुस्सा करना भूल गए।।

केवल खुद को मुक्त चाहते।

तुमको भी नहीं रिक्त चाहते।

निज प्रेमी संग, खुशी रहो तुम,

हम तो बस एकांत चाहते।

पुष्प भी काँटे बन जाते हैं, काँटें भी हमको कूल भए।

विश्वास नहीं अब, खुद पर हमको, गुस्सा करना भूल गए।।


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