Sunday, April 24, 2022

नहीं किसी की चाह रही अब

नहीं किसी से द्वेष रहा है 


सहते सहते, सहनशील सह, आक्रोश नहीं अवशेष रहा है।

नहीं किसी की चाह रही अब, नहीं किसी से द्वेष रहा है।।

नहीं क्रोध है तुम पर कोई।

काटोगी तुम, जो हो बोई।

अकेले पन का तोहफा हमें दे,

तुम प्रेमी संग जाकर सोईं।

हम खुद ही, खुद के साथी, साथ का नहीं कोई लोभ रहा है।

नहीं किसी की चाह रही अब, नहीं किसी से द्वेष रहा है।।

नहीं द्वेष है, नहीं है नफरत।

नहीं रही अब कोई हसरत।

लुटकर भी खामोश रहें हम,

देख रहे कुदरत की कसरत।

नहीं दोष है तुम्हारा कोई, नहीं हमें अब मोह रहा है।

नहीं किसी की चाह रही अब, नहीं किसी से द्वेष रहा।।

तुमने की थी अपने मन की।

हमको पालना, करनी पन की।

छलना ही है, कर्म तुम्हारा,

नहीं चाह, हमको, पद धन की।

नहीं है तुमसे, कोई शिकायत, अपना ही बस दोष रहा है।

नहीं किसी की चाह रही अब, नहीं किसी से द्वेष रहा है।।

संबन्धों का नहीं है बंधन।

भूल गए हैं आज प्रबंधन।

तुम अपनी खुशियों को खोजो,

हम व्यर्थ का करते क्रंदन।

नहीं रहा कोई मीत हमारा, शेष न मन का कोश रहा है।

नहीं किसी की चाह रही अब, नहीं किसी से द्वेष रहा है।।


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