Friday, April 15, 2022

धोखेबाज, झूठ की हांड़ी,

 चढ़ती बारंबार नहीं


प्रेम बिना कोई राष्ट्र नहीं है, प्रेम बिना परिवार नहीं।

जिसको किसी से प्रेम न होता, उसका कोई घरबार नहीं।।

प्रकृति के घटक सभी हैं यहाँ पर।

नर-नारी बिन सृजन कहाँ पर?

नव सृजन नव सृष्टि होती,

प्रकृति पुरूष का साथ जहाँ पर।

जब भी मिलो, प्रेम से जिओ, मिलना होता हरबार नहीं।

जिसको किसी से प्रेम न होता, उसका कोई घरबार नहीं।।

मिलने से ही संस्था बनतीं।

मिलने से ही कली विहँसतीं।

मिलने ही की खातिर सृष्टि,

नर-नारी का रूप विरचती।

प्रेम बिना कोई युद्ध न होता, प्रेम बिना दरबार नहीं।

जिसको किसी से प्रेम न होता, उसका कोई घरबार नहीं।।

प्रेम को कपट नहीं सुहाता।

धोखे का यह नहीं अहाता।

छल, कपट कर जीतना चाहे,

बचा न सकता, प्रेम विधाता।

धोखेबाज, झूठ की हांड़ी, चढ़ती बारंबार नहीं।

जिसको किसी से प्रेम न होता, उसका कोई घरबार नहीं।।



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