Saturday, April 9, 2022

प्रेम व्याप्त जग के कण कण में,

प्रेम जगत का सार है


 प्रेम व्याप्त जग के कण कण में, प्रेम जगत का सार है।

जीवन वही सफल कहलाता, जो बिखराता प्यार है।।

प्रेम से जीवन विकसित होता।

प्रेम बिना, भंवरों में गोता।

आनंद शिखर चढ़ पाता है नर,

प्रेम, प्रेम संग, प्रेम से सोता।

प्रेम हेतु संघर्ष जगत में, प्रेम सृजन आधार है।

प्रेम व्याप्त जग के कण कण में, प्रेम जगत का सार है।।

जिसको नहीं प्रेम मिल पाता।

निरर्थक सब हो रिश्ता-नाता।

जीवन नहीं वह जी पाता है,

मन का मीत नहीं जो पाता।

हर बाधा को पार वो करता, जिसको मिलता यार है।

प्रेम व्याप्त जग के कण कण में, प्रेम जगत का सार है।।

प्रेम ही देव, प्रेम ही गीता।

प्रेम ही राधा, प्रेम ही सीता।

विकार मुक्त नर हो जाता है,

प्रेम का सर्जक, प्रेम जो पीता।

प्रेम का अभाव नहीं जब होता, प्रेम से  बेड़ा पार है।

प्रेम व्याप्त जग के कण कण में, प्रेम जगत का सार है।।


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