Sunday, April 19, 2020

हम करते थे, प्यार तुम्हें कितना?

ये अहसास दिला न सके


                                                     डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



हम करते थे, प्यार तुम्हें कितना? ये अहसास दिला न सके।
साथ तुम्हारा, पल पल चाहा, हम, तड़पे कितना? बता न सके।
समय न माँ का, मिला बचपन में।
किताबों में खोये, थे जिदपन में।
युवावस्था, सारी, संघर्ष में बीती,
आज भी, अकेले, हम पचपन में।
नारी हित में, जीये थे पल-पल, साथ कभी भी पा न सके।
हम करते थे, प्यार तुम्हें कितना? ये अहसास दिला न सके।।
प्रेम छिपा, हम रहे घूमते।
साहस नहीं था, तुम्हें चूमते।
हम तो, दिल की, नहीं कह पाये,
मिली न कोई, जो दिल की पूछते।
कदम-कदम पर, मिलीं कई थीं, दिल की बात, बता न सके।
हम करते थे, प्यार तुम्हें कितना? ये अहसास, दिला न सके।।
सच्चाई की, चाह थी हमको।
छिपाव कपट बर्दाश्त न हमको।
सब कुछ कह ले, सब कुछ सुन ले,
साथी कोई भी, मिली न हमको।
कदम-कदम पर प्यार लुटाया, विश्वास किसी का पा न सके।
हम करते थे, प्यार तुम्हें कितना? ये अहसास दिला न सके।।
कभी किसी से, कुछ नहीं चाहा।
सच बोले बस, वह भी न पाया।
मैंने सब कुछ, सौंप दिया था,
सब कुछ छिपाकर, क्यों भरमाया?
प्यार के नाम क्यों, मिलते धोखे? हम, अपने को समझा न सके।
हम करते थे, प्यार तुम्हें कितना? ये अहसास दिला न सके।।

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